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गळगचिया (24) / कन्हैया लाल सेठिया

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पंखेरू कयो-रूँखड़ा थारै पराँ तो अणगिणत पंखेरू आवै र चल्या जावै, तूं सगळां री याद किंया राखै है ?
रूँख बोल्यो- म्हारो एक एक पानड़ो एक एक आयै र गयै री याद है।