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गवनवाँ नाही जाब माई / दीपक शर्मा 'दीप'
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गवनवाँ नाही जाब माई! तजि के दुअरिया
गवनवाँ नाही जाब माई! तजि के दुअरिया
सुग्घऽर-सुग्घऽर, माऽटी के खेलऽवना
रतिया चलावें मिलि पवना - दुपऽवना
नीक लागे मोहे इहै फटहा बिछऽवना
निबिया की डाऽरि के पटरा-झुलऽवना
निबिया की डाऽरि के पटरा-झुलऽवना
अँगनवाँ! आव भरि लेईं तोहें अँकऽवरिया
गवनवाँ नाही जाब माई तजि के दुअरिया।
सासु - ससुर तोहें ठेंगा, भतार हो
डोली मोरी रख देईं भईया कहार हो
हार-सिंगार रखा आपन...सोनार हो
घरवा न छूऽटी कभौ घरवा हमार हो
घरवा न छूऽटी कभौ घरवा हमार हो
ए री सखी आवा चलीं खेत की डगऽरिया...
गवनवाँ नाही जाब माई तजि के दुअरिया।
गवनवाँ नाही जाब माई! तजि के दुअरिया
गवनवाँ नाही जाब माई तजि के दुअरिया।