भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गश्त / अजित कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात गये सीटियाँ बजानेवाले बच्चों को
कोई तो रोको ।
हमें नींद में सायरन सुनाई पड़ने लगते हैं ।