भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गहन / सपन सारन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अँधेरे को चीरती हुई
एक तीखी आवाज़
पहुँचती है मुझ तक

वो इस क्षण है
अगले, नहीं।

ये जान मन में एक
अजीब कुलबुलाहट होती है
मानो अलौकिक किसी संसार से
कोई गहन कुछ बोल रहा है

जो इस पल है
और अब ... नहीं।