भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गहरा ही सही/ हरीश भादानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गहरा ही सही
अथाह रेत के गर्भ में
फूटता छलछलाता
मिल ही तो जाता है
पानी
अटूट पानी.....
            
मार्च’ 82