भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गहरी जड़ें लिए / अर्चना भैंसारे
Kavita Kosh से
तुम आँगन के बरगद हो पिता
जो धँसे रहे गहरी जड़ें लिए
जिसकी बलिष्ठ भुजाएँ
उठा सकीं मेरे झूलों का बोझ
और जिन्होंने थामे रखी
मज़बूती से आँगन की मिट्टी
ताकि एक भी कण रिश्तों का
विषमता की बाढ़ में न बह पाए
उसकी आँखें निगरानी करे
ताकि ना आने पाए मेरे घर सर्द हवा
और बचा रहे मेरा खपरैल छाया घर
किसी धूप-छाँव से ।