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ग़ज़ब की ले लुनाई घिर सुहानी साँझ आयी है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
गजब की ले लुनाई फिर सुहानी शाम आयी है।
लिए खुशबू हवा डोली हृदय को खूब भायी है॥
निहारे झील-दर्पण चंद्रमा सुंदर वदन अपना
इसी सौंदर्य ने तो रोहिणी प्यारी दिलायी है॥
नयन में अश्रु यदि आयें पलक पट बंद कर लेना
नहीं पूछेगा कोई आँख यह क्योंकर नहायी है॥
उगेगा चंद्रमा फिर से सितारे जगमगायेंगे
घड़ी भर के लिए काली घटा अंबर पर छायी है॥
चलो तदबीर से तक़दीर का हम सामना कर लें
बड़ी उम्मीद ले कर ये हमारे द्वार आयी है॥
झुकी कचनार की डाली बिखरतीं फूल पंखुड़ियाँ
नजर उसको भी हँस कर गुलमोहर ने ही लगायी है॥
लुढ़क कर सूर्य का गोला छिपा जा कर समदर में
डरी संध्या तिमिर ने कालिमा अपनी बढ़ायी है॥