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ग़ज़लों का जाम! मेरे इश्क के नाम / उर्मिल सत्यभूषण

ग़ज़लों का जाम! मेरे इश्क के नाम
छूने न दूँगी मैं जलता हुआ जाम

वो छुप गया है, हुआ लापता है
किसको कहाँ पर मैं भेजूं पैग़ाम

अश्कों की मय यह उबलती हुई
पीती अकेली हूँ मैं सुबहो-शाम

तिलतिल जलाती है विरह की अग्नि
पल भर को भी न मिलता आराम

रिसने लगा है दिल का नासूर
डसने लगी है पीड़ा ओ राम

खत यह उसको मिलेगा ज़रूर
चाहे लिखा है पता अनाम

ख्वाबों में आयेगा पीने को मय
उर्मिल मिलन का है वही मुकाम।