ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएंगे
रोयेंगे बहुत लेकिन आंसू नहीं आयेंगे
कह देना समंदर से हम ओस के मोती है
दरया कि तरह तुझ से मिलने नहीं आयेंगे
वो धुप के छप्पर हों या छाओं कि दीवारें
अब जो भी उठाएंगे मिल जुल के उठाएंगे
जब साथ न दे कोई आवाज़ हमे देना
हम फूल सही लेकिन पत्थर भी उठाएंगे