भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएंगे / बशीर बद्र
Kavita Kosh से
					
										
					
					ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएंगे 
रोयेंगे बहुत लेकिन आंसू नहीं आयेंगे 
कह देना समंदर से हम ओस के मोती है 
दरया कि तरह तुझ से मिलने नहीं आयेंगे 
वो धुप के छप्पर हों या छाओं कि दीवारें 
अब जो भी उठाएंगे मिल जुल के उठाएंगे 
जब साथ न दे कोई आवाज़ हमे देना 
हम फूल सही लेकिन पत्थर भी उठाएंगे
	
	