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ग़ज़लों में तन्हाई रक्खी जाती है / जंगवीर सिंंह 'राकेश'
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पलकों पर शरमाई रक्खी जाती है
आखों में बीनाई<ref>दृष्टि या कोई दृश्य</ref> रक्खी जाती है
इश्क़ जवां होता है जब पहले-पहले
हाथों में अँगड़ाई रक्खी जाती है
चार क़दम चलता हूँ तो ये लगता है
क़दमों पर परछाई रक्खी जाती है
ग़ज़लें यूँ हीं नइं होती हैं ग़ज़लें भी
ग़ज़लों में तन्हाई रक्खी जाती है
फ्रेम में रक्खी जाती है जैसे तस्वीर
उल्फ़त<ref>मुहब्बत, प्यार</ref> में हरजाई<ref>आवारगी या इधर-उधर प्यार करने वाला या बेवफ़ाई</ref> रक्खी जाती है