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ग़ज़लों से तज्सीम हुई तकमील हुई / अमीर हम्ज़ा साक़िब

ग़ज़लों से तज्सीम हुई तकमील हुई
नुक़्त नुक़्ते से मेरी तरसील हुई

नोच रही है रूह के रेशे रेशे को
इक ख़्वाहिश जो रफ़्ता रफ़्ता चील हुई

मरने लगा रग रग मे सफ़्फ़ाकी का ज़हर
शहर-ए-दिल की आब-ओ-हवा तब्दील हुई

एक जहान-ए-ला-यानी ग़क़ार्ब हुआ
एक जहान-ए-मानी की तश्कील हुई

मिस्र-ए-जाँ ‘साक़िब’ सब्ज़-ओ-शादाब हुआ
जब से आँख मेरी दरिया-ए-नील हुई