भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ग़ज़ल की बात बताने कोई नहीं आया / कैलाश झा 'किंकर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ग़ज़ल की बात बताने कोई नहीं आया
बहर-रदीफ को पाने कोई नहीं आया।

सँभाल कर ही रखा करते लोग दौलत को
जहाँ में ज़र को लुटाने कोई नहीं आया।

हजार बार इशारे हुए हैं कुदरत के
मगर दरख़्त लगाने कोई नहीं आया।

सही-सही तो कभी भी न बोल पाया वह
उसे भी राह पर लाने कोई नहीं आया।

अभी भी घोर ग़रीबी यहाँ पर है यारो
अमीर बनने-बनाने कोई नहीं आया।

ये उम्र भी तो बहकने की उम्र होती है
डगर सही भी दिखाने कोई नहीं आया।

किसी ख़याल में खोया हुआ ज़माना है
तभी तो आग बुझाने कोई नहीं आया।

चलो यहाँ से कहीं दूर आज चलते हैं
सुबह से दिल को लगाने कोई नहीं आया।