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ग़ज़ल तुमको सुनाना चाहता हूं / ‘अना’ क़ासमी

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ग़ज़ल तुमको सुनाना चाहता हूं
मैं लहजा आज़माना चाहता हूं

ख़फ़ा हो जायें ना ज़िल्लेइलाही<ref>बादशाह</ref>
ज़रा सा मुस्कुराना चाहता हूं

चराग़ों को पसीना आ रहा है
तुम्हारे ख़त जलाना चाहता हूं

तकल्लुफ़ ने थका कर रख दिया है
कोई साथी पुराना चाहता हूं

ज़रा सी बात बाक़ी रह गई है
तुझे फिर से जगाना चाहता हूं

तअल्लुक़ बोझ बनता जा रहा है
बिछड़ने का बहाना चाहता हूं

शब्दार्थ
<references/>