भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ग़ज़ल तो रात की रानी / अवधेश्वर प्रसाद सिंह
Kavita Kosh से
ग़ज़ल तो रात की रानी।
जिसे हम शाम से जानी।।
सुबह उठते कविता को।
गिरे जब आँख से पानी।।
पता फिर भी मुझे मालूम।
मनाने पर नहीं मानी।।
मनाऊँ मैं भला कैसे।
नहीं हूँ मैं बड़ा ज्ञानी।।
पुनः फिर रात जब आई।
नहीं है रूप की सानी।।