ग़ज़ल में चाहता हूँ इश्क़ है ख़ुदा लिख दूँ / अभिनव अरुण
ग़ज़ल में चाहता हूँ इश्क़ है ख़ुदा लिख दूँ
हरेक शेर का मैं काफ़िया वफ़ा लिख दूँ
कता रुबाई नज़्म में वो खुद ही ढल जाए,
मुझे हुनर तू कर अता कर कि मैं दुआ लिख दूँ
है लुत्फ़ औघड़ी मलंगी और फ़कीरी में,
मैं तुझसे इश्क़ को मेरे ख़ुदा नशा लिख दूँ
हवा में लिपटी ख़ुशबुओं को मैंने देखा है,
मैं कैसे इश्क़ तेरे वास्ते मना लिख दूँ
मेरे लिखे के हर सफे में है नुमाया तू,
अगर दीवान मैं करूँ तो आइना लिख दूँ
हज़ार पत्थरों की चोट खा रहूँ पत्थर,
वफ़ा की राह में मैं ख़ुद को आज़मा लिख दूँ
जहां से आ रही है ख़ुशबू लोहबानों की,
चिराग़ जल रहे जहां वो रास्ता लिख दूँ
ग़ज़ल का आख़िरी है शेर, इस वसीयत में,
मैं उनके नाम मुहब्बत का ज़ाइका लिख दूँ
वो दो क़दम जो मेरे साथ चल सकें, अभिनव,
ये दिल वरक करूँ मैं उसपे शुक्रिया लिख दूँ