भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ग़नीमत ख़त्म होती जा रही है / संजय चतुर्वेद
Kavita Kosh से
निग़ाहे शौक है हिन्दी जुबाँ में
सुख़न मुश्ताक आलम आज भी है
महाकवि रोज़ पैदा हो रहे हैं
ग़नीमत ख़त्म होती जा रही है
कौम बोली कि नदीदा है मुआ ये नौशा
आँख मारे है सरे बज़्म उठाकर सेहरा ।