भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ग़नीमत है / उमा शंकर सिंह परमार
Kavita Kosh से
ग़नीमत है
आँखों पर
चश्मा है
चश्मा उतरा
मंज़र बदला
महानगर दिल्ली
मौत की घाटी में
और आदमी
जानवर में तब्दील
राजा शेर भी,
मंत्री गीदड़ भी
चाटुकार कुत्ते भी
कन्धों पर जुआ
हाँफती साँस
लड़खड़ाते क़दम
कोल्हू में जुता
मेहनतकश बैल भी