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ग़फ़लत में वक्त़ अपना न खो हुशियार हो / वली दक्कनी
Kavita Kosh से
ग़फ़लत में वक्त़ अपना न खो हुशियार हो हुशियार हो
कब लग रहेगा ख़्वाब में बेदार हो बेदार हो
गर देखना है मुद्दआ, उस शहिद-ए-मा'नी का रौ
ज़ाहिर परीशाँ सूँ सदा, बेज़ार हो बेज़ार हो
ज्यूँ चतर दाग़-ए-इश्क कूँ रख सर पे अपने अव्वलन
तब फ़ौज-ए-अहल-ए-दर्द का, सरदार हो, सरदार हो
वो नोबहार-ए-आशिक़ाँ, ज्यूँ सहर जग में है अयाँ
ऐ दीद: वक़्त-ए-ख़्वाब नईं, बेदार हो, बेदार हो
मत्ले का मिसरा ऐ 'वली' दर्द-ए-ज़बाँ कर रात-दिन
ग़फ़लत में वक़्त अपना न खो, हुशियार हो, हुशियार हो