भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ग़मज़दा आँखों का दो बूँद नीर कैसे बचे / डी .एम. मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ग़मज़दा आंखों का दो बूंद नीर कैसे बचे
ऐसे हालात में अपना ज़मीर कैसे बचे

धर्म के नाम पे तालीम दोगे बच्चों को
मुझको इस बात की चिंता कबीर कैसे बचे

एक भी कृष्ण नहीं, अनगिनत दुःशासन हैं
आज की द्रौपदी का बोलो चीर कैसे बचे

हर तरफ़ घात लगाए हैं लुटेरे बैठे
ऐसी सूरत में कोई राहगीर कैसे बचे

इस हुकूमत में ग़रीबों की बात कौन सुने
दर-दर ठोकरें खाता फ़क़ीर कैसे बचे

सिर्फ़ महलों की तरक़्क़ी पे ज़ोर देता है
क्या कभी यह भी है सोचा कुटीर कैसे बचे