गमे-हस्ती के सौ बहाने हैं,
ख़ुद ही अपने पे आज़माने हैं
सर्द रातें गुजारने के लिए,
धूप के गीत गुनगुनाने हैं
क़ैद सौ आफ़ताब तो कर लूँ,
क्या मुहल्ले के घर जलाने हैं
आ ही जायेंगे वो चराग़ ढले,
और उनके कहाँ ठिकाने हैं
फ़िक्र पर बंदिशें हजारों हैं,
सोचिये, क्या हसीं ज़माने हैं
तुझ-सा मशहूर हो नहीं सकता
तुझ से हटकर, मेरे फ़साने हैं