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ग़मे-हिज्र की इंतिहा हो गई है / मेला राम 'वफ़ा'
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ग़मे-हिज्र की इंतिहा हो गई है
तबीयत सुकूं-आश्ना हो गई है
फुगां बन के उट्ठी थी दिल से शिकायत
मगर लब पर आ कर दुआ हो गई है
क़दम बढ़ के लेना था वाइज़ के साक़ी
बड़ी आज तुझ से ख़ता हो गई है
लबों की ख़मोशी से अब कुछ न होगा
नज़र सर ब-सर इल्तिजा हो गई है
रवा थी न बे-दाद एहले-वफ़ा पर
रवा होते होते रवा हो गई है
तिरे राज़े-उल्फ़त को रुसवा न कर दे
जो हालत तिरी ऐ 'वफ़ा' हो गई है।