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ग़मों का दिलों में ठिकाना बना है / रंजना वर्मा
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ग़मों का दिलों में ठिकाना बना है
जो रुसवा हुए तो मनाना मना है
रहे यूँ तो झूठे ही उल्फ़त के वादे
मगर प्यार को भूल जाना माना है
मुहब्बत कभी भी मिटाये न मिटती
कहाँ कब मुहब्बत का मंदिर बना है
बड़ी बेमुरव्वत रिवाज़ों की दुनियाँ
समर दिल का दुनियाँ से देखो ठना है
लगी बंदिशें हैं उजालों पे यारब
हुआ जा रहा खूब कोहरा घना है
किसे हाथ देकर बुलायें मदद को
तशद्दुद से हर एक दामन सना है
है यूँ तो छुपाना बहुत लाज़मी पर
न जज़्बात का कोई अंकुश बना है
रहे हर कोई अपनी ही सरहदों में
किसी और क घर में क्यों झांकना है
मुहब्बत बरसती रहे मेरे आँगन
उठा हाथ रब से यही माँगना है