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ग़मो की ख़ूब यारी कर रहा हूँ मैं / आकिब जावेद

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ग़मो से खूब यारी कर रहा हूँ
मगर कुछ राज़दारी कर रहा हूँ

जुनूँ में आ गया हूँ इश्क़ के मैं
फ़ना हूँ ख़ाकसारी कर रहा हूँ

भुलाकर नफरते सब मैं जहाँ में
मुहब्बत की सवारी कर रहा हूँ

जहाँ मे' बेवफ़ाई का चलन है,
वफ़ा की दावेदारी कर रहा हूँ

मेरे वो हाल से है खूब वाक़िफ़
मैं उनकी याद तारी कर रहा हूँ

वो आया जबसे मेरी ज़िन्दगी में
उसे मैं इख़्तियारी कर रहा हूँ

छुपाकर हाल 'आकिब" आँख से मैं
मुसलसल अश्कबारी कर रहा हूँ