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ग़म, कश्मकश, अज़ाब, गिला याद आ गया / उदय कामत

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ग़म, कश्मकश, अज़ाब, गिला याद आ गया
ख़लवत में हमको फिर वह समा याद आ गया

ज़ुलमत-कदे में आज दिया याद आ गया
काफ़िर को आज फिर वह ख़ुदा याद आ गया

ज़िक्र-ए-वफ़ा पर दिल ये हुआ और ग़मज़दा
बरसों पुराना तर्क-ए-वफ़ा याद आ गया

यूँही गुज़र रहा था जो तेरी गली से मैं
बरसों के बाद ख़ुद का पता याद आ गया

जब प्यास और तलब लगी पानी की आज फिर
क़िस्सा-ए-कर्बला क्यों भला याद आ गया