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ग़म-ए-फ़िराक़ मय ओ जाम का ख़याल आया / शाद अज़ीमाबादी

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ग़म-ए-फ़िराक़ मय ओ जाम का ख़याल आया
सफ़ेद बाल लिए सर पे इक वबाल आया

मिलेगा ग़ैर भी उन गेल ब-शौक़ ऐ दिल
हलाल करने मुझे ईद का हिलाल आया

अगर हैं दीदा-ए-रौशन तो आफ़्ताब को देख
उधर उरूज हुआ और इधर ज़वाल आया

लुटाए देते हैं इन मोतियों को दीदा-ए-शौक़
भर आए अश्‍क कि मुफ़लिस के हाथ माल आया

लगी नसीम-ए-बहारी जो मअरिफ़त गाने
गुलों पे कुछ नहीं मौकूफ़ सब को हाल आया

पयाम-बर को अबस दे के ख़त उधर भेजा
ग़रीब और वहाँ से शिकस्ता-हाल आया

ख़ुदा ख़ुदा करो ऐ ‘शाद’ इस पे नख़वत क्या
जो शाइरी तुम्हें आई तो क्या कमाल आया