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ग़म-ज़दा हैं मुबतला-ए-दर्द हैं ना-शाद हैं / अख़्तर अंसारी
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ग़म-ज़दा हैं मुबतला-ए-दर्द हैं ना-शाद हैं
हम किसी अफ़साना-ए-ग़म-नाक के अफ़राद हैं
गर्दिश-ए-अफ़लाक के हाथों बहुत बर्बाद हैं
हम लब-ए-अय्याम पर इक दुख भारी फ़रियाद हैं
हाफ़िज़े पर इशरतों के नक़्श बाक़ी हैं अभी
तू ने जो सदमे सही ऐ दिल तुझे भी याद हैं
रात भर कहते हैं तारे दिल से रूदाद-ए-शबाब
इन को मेरी वो शबाब-अफ़रोज़ रातें याद हैं
'अख़्तर'-ए-ना-शाद की परछाईं से बचते रहे
जो ज़माने में शगुफ़्ता-ख़ातिर ओ दिल-ए-शाद हैं