भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ग़म ए अन्जाम ए शादमानी से / ज़िया फ़तेहाबादी
Kavita Kosh से
ग़म ए अन्जाम ए शादमानी से ।
दिल हिरासाँ है कामरानी से ।
निकहत ओ रंग ए गुल से क्या निसबत
मेरे ग़म से तेरी जवानी से ।
कारोबार ए हवस चला क्या क्या
जिन्स ए इखलास की गिरानी से ।
हुआ हमवार जादा ए मंज़िल
पा ए हिम्मत की सख्तजानी से ।
सोज़ भी अश्क ए ग़म में शामिल है
आग़ का मेल और पानी से ?
क्यूँ मेरा दिल धड़कने लगता है
कैस ओ फ़रहाद की कहानी से ।
सीख ली बुलबुलों ने नगमागरी
ऐ " ज़िया " तेरी ख़ुशबयानी से ।