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ग़म के मारों से दोस्ती कर लो / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
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ग़म के मारो से दोस्ती कर लो
बेसहारों से दोस्ती कर लो
तुम कि उड़ते हुए बगूले हो
रेग-ज़ारों से दोस्ती कर लो
कर के तूफ़ान के सुपुर्द मुझे
तुम किनारों से दोस्ती कर लो
मेरी पलकों पे जो लरज़ते हैं
उन सितारों से दोस्ती कर लो
इक तबस्सुम को जो तरसती है
उन बहारों से दोस्ती कर लो
मंज़िलों की अदा शनास हैं ये
रहगुज़ारों से दोस्ती कर लो
ख़ाकसारी में सरबुलंदी है
ख़ाकसारों से दोस्ती कर लो
ख़ाकसारी में सरबुलंदी है
ख़ाकसारों से दोस्ती कर लो
चाह फूलों की है अगर 'रहबर'
ख़ाक़-ज़ारों से दोस्ती कर लो।