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ग़म दे के मुझे आपने बख्शी है ज़िन्दगी / ईश्वरदत्त अंजुम

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ग़म दे के मुझे आपने बख्शी है ज़िन्दगी
अब मेरी ज़िन्दगी मुझे लगती है ज़िन्दगी

हंसने का नाम ज़िन्दगी और ख़ामुशी का मौत
दोनों के बीच ही तो भटकती है ज़िन्दगी

हर शय करीब आ के बहुत दूर ही गयी
कितनी उदास अब मुझे लगती है ज़िन्दगी

बैचैन दिल का सजदा भी होता नहीं क़ुबूल
दिल में हो जब सुकून हसीं लगती है ज़िन्दगी

कैसे करे गुरेज़ भला ज़िन्दगी से हम
आइना ले के हाथ में बैठी है ज़िन्दगी

अपने वतन की इज़्ज़तो-हुरमत के वास्ते
क़ुर्बान होने वालो को मिलती है ज़िन्दगी

क्यों अपनी बेबसी में तुम अंजुम उदास हो
हंसती भी है कभी अगर रोती है ज़िन्दगी।