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ग़म ने जब से किया ठिकाना है / रंजना वर्मा
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ग़म ने जब से किया ठिकाना है
दर्द का दिल ये आशियाना है
दूर जाने की न बातें कीजे
आप को तो क़रीब आना है
देश अपना है ज्यूँ जन्नत कोई
कर्ज इस का हमें चुकाना है
अश्क़ आँखों में सँभाले रहिये
दर्द पीना है मुस्कुराना है
जिसके दामन में हैं भरी खुशियाँ
उस का मौसम हुआ सुहाना है
वक्त की धार में बहे चलिये
कोई मौका नहीं गंवाना है
रोज़ आती नहीं बहार इधर
सारा गुलशन इसे सजाना है