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ग़म में जो सदा बे-ग़म कैसे / कैलाश झा ‘किंकर’
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ग़म में जो सदा बे-ग़म कैसे।
बेगम की हैं आँखें नम कैसे।
राहें तो तुम्हारी टूटी हैं
निकलेगा भला टमटम कैसे।
उनकी भी निगाहें क़ातिल हैं
रख पाएँ भला संयम कैसे।
तुम भूल गये हो अब हमको
भूलेंगे तुम्हें पर हम कैसे।
पाए हो नया तुम मोबाइल
पर बात करें हरदम कैसे।