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ग़म से जब घबराओगे तुम / हरि फ़ैज़ाबादी
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ग़म से जब घबराओगे तुम
तब कैसे जी पाओगे तुम
औरों के गर रहे भरोसे
तो जल्दी थक जाओगे तुम
आज नहीं कल कहकर कब तक
बच्चों को बहलाओगे तुम
बदले दिन फिर रंग बदलेंगे
दिन पे जो इठलाओगे तुम
कितने दिन तक झूठ बोलकर
दुनिया को भरमाओगे तुम
भूले जो एहसान किसी का
तो बेहद पछताओगे तुम
लिख तो डाला लेकिन कैसे
‘हरि’ को ख़त पहुँचाओगे तुम