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ग़म से मिलता ख़ुशी से मिलता है / अब्दुल मजीम ‘महश्र’
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ग़म से मिलता ख़ुशी से मिलता है
सिलसिला ज़िन्दगी से मिलता है
वैसे दिल तो सभी से मिलता है
उनसे क्यूँ आज़जी से मिलता है
है अजब जो मुझे रुलाता है
चैन दिन को उसी से मिलता है
हम जो हैं साथ ग़म उठाने को
फिर भी वह अजनबी से मिलता है
बिगड़ी बन जाएगी तेरी ‘महशर’
बे ग़रज़ गर किसी से मिलता है