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ग़रीबी का भेद / सूरजपाल चौहान
Kavita Kosh से
बेचता नहीं
मिलावटी सामान
व्यापारी बनकर
करोड़ों की रिश्वत
खाता नहीं
मिनिस्टर बनकर
मिलकर दुश्मनों के साथ
नहीं करता गद्दारी—
अपने देश के साथ
नहीं बेचता
गुप्त सूचनाएँ
दूसरों के हाथ।
खोलकर दुकानें
मज़हब और धर्म की
नहीं करता
धर्म का व्यापार
तरह-तरह के
मुखौटे लगाकर
नहीं करता लूटमार।
श्रेष्ठ कहे जाने वालो!
मैंने तुम्हारी तरह
जिस थाली में खाया
उसमें—
नहीं किया छेद
बस, यही है
मेरी घोर ग़रीबी का भेद।