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ग़रीबी रेखा / इब्तिसाम बरकत

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जब मैं बच्ची थी एक ग़रीब परिवार की
तो हम ग़रीबी रेखा पर अपने कपड़े
सुखाने के लिए ड़ालते थे,
और इसके साथ रस्सी कूदते थे।
मेरे दोस्त भी शामिल हो जाते इस खेल में
और हम उम्मीद करते कि इस तरह
हम बाधाओं और दीवारों को
पार करना सीख जाएँगे ....

हमारी ग़रीबी रेखा बहुत सहृदय और सुलभ थी
यह एक घर से दूसरे घर तक फैली हुई थी
गपशप से बने
टेलीफ़ोन के तार की तरह।
और किसी जादू की तरह जहाँ से भी कटती,
अपने आप नई हो जाती!
और इसलिए लोग तरह-तरह से इसका उपयोग करते,
मैंने इसमें से एक टुकड़ा
अपने टट्टू की पूँछ के लिए काटा
यह टट्टू मुझे जगह-जगह ले जाता था
पर ज़्यादा दूर नहीं
क्योंकि उसे भूख लगने लगती थी
और मेरे पास उसे देने के लिए
फ़ालतू खाना नहीं था।

ख़ास छुट्टियों के दिनों में
हम ग़रीबी रेखा को घसीटकर
तर्क की तरह ले आते थे
उन पड़ौसियों के बीच
जिनके पास
हमसे थोड़ा ज़्यादा पैसा होता था।

गर्मियों के दिनों में, यह रेखा
सड़क में तब्दील हो जाती थी
जिस पर हम फ़टे जूते पहनकर निकलते
जो भरे रहते थे
पवित्र शहर के कंकड़ों से।

कभी-कभी जब चीज़ें काजल की तरह स्याह दिखती थीं
तब मैं ग़रीबी रेखा को
अपना आई लाइनर बना लेती
और देखती कि ज़्यादातर लोग
मुझसे भी ज़्यादा ग़रीब थे,
उनकी रेखा इतनी लम्बी थी
कि वह आने वाली पीढ़ियों तक
पहुँच सकती थी
यदि कोई लिखता नहीं
कुछ रचनात्मक
बहुत उम्मीद के साथ, इस पर .....

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणि मोहन मेहता