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ग़र आपने ग़जलों की ज़ुल्फों को संवारा है / आर्य हरीश कोशलपुरी
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ग़र आपने ग़जलों की ज़ुल्फों को संवारा है
हमने भी उसे अपने अश्कों से पखारा है
इस देश की मिट्टी पर, चंदन पे या ख़ुशबू पर
हक़ जितना तुम्हारा है हक़ उतना हमारा है
क्यूं वक़्त की सच्चाई रख देता है काग़ज़ पर
इस नाते मेरे कवि का गर्दिश में सितारा है
हम माफ़ नही होंगे ग़ज़लों की अदालत में
हमने जो ग़ुनाहों की तस्वीर उतारा है
तर होते पसीने में ग़ज़लों के सिकंदर भी
ये शे, र जो कहता हूँ एहसान तुम्हारा है
हिंदी से या उरदू से छू करके इसे देखो
शीशे के बदन जैसा एहसास कुँवारा है