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ग़लत है आग से कह दें पड़ेगा काम नहीं / विनोद तिवारी


ग़लत है आग से कह दें पड़ेगा काम नहीं
मगर ये सच है कि पानी का इन्तज़ाम नहीं

अशिष्ट हो गए हैं सारे मुहल्ले वाले
हवा में गालियाँ उड़ती हैं राम-राम नहीं

ये लोग पेट से हट कर न सोच पाएँगे
सवेरे मिल गई रोटी इन्हें तो शाम नहीं

यहाँ के रहजनों में रहबरी का रिश्ता है
शहर में कोई भी आदर्श इतना आम नहीं

हमें तो ऐसी जगह गुलमोहर उगाने हैं
जहाँ पे दूर तक हरियालियों का नाम नहीं