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ग़ायब होने वाले आदमी के बारे में / स्वप्निल श्रीवास्तव

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अभी अभी हमारे घोसियारी बाज़ार में
एक आदमी यहीं पर था
अचानक कहाँ गायब हो गया
मैंने उस आदमी से बातचीत की थी
हालचाल पूछा था

वह ठीक हमारे सामने सिगरेट पी रहा था
और मँहगाई के बारे में बातचीत कर
रहा था
वह बता रहा था कि एक ज़माने में
जितने की एक सिगरेट की डिब्बी
मिलती थी, अब उतने में एक सिगरेट
नहीं मिल रही है

बाज़ार में चीज़ों के दाम बेतहाशा बढ़े हैं
हाँ आदमी की क़ीमत लगातार कम हुई है
लोग भूख मिटाने के लिए अपने बच्चे तक
बेच देते हैं
स्त्रियों के लिये कौमार्य का कोई अर्थ नहीं
रह गया है
वे रोटी के भाव बिक जाती है

हिन्दी के मशहूर कवि राजेश जोशी
से पूछ लीजिए, वे मेरे साथ सिगरेट
पी रहे थे
हालाँकि वे भोपाल में रहते हैं
लेकिन कवि कहीं भी पहुँच सकता है
उसके बारे में प्राचीन उक्ति है - जहाँ
न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि

वह आदमी बाहर का आदमी नहीं लगता था
सम्भवत: आसपास के इलाके से आया हो

मान लीजिए वह बाहर का ही आदमी हो
तो क्यों ग़ायब हो

ग़ायब होना हमारे समाज के लिए शर्म
की बात है
हम चीज़ों के ग़ायब होने से बेचैन
हो जाते हैं
आदमी का ग़ायब होना तो एक
दुर्घटना है

मैं उस आदमी को भूल नहीं सकता
उस तरह सिगरेट पीते हुए आदमी को
मैंने नहीं देखा है
वह धुएँ के छल्ले उड़ा रहा था

वह खेल रहा था धुएँ से,
उसके आसपास इतना धुआँ इकट्ठा हो गया था
कि वह सम्भवत: धुएँ के बीच से ग़ायब
हो गया था, इसलिए कोई उसे ग़ायब होते
देख नहीं पाया

कहीं यह धुआँ बनाने वाली कम्पनी की
साजिश तो नहीं है
यह भी हो सकता है यह किसी गिरोह का
कारनामा हो

मैं, हज़ारों के बीच उस आदमी को पहचान
लूँगा
उसके सिगरेट पीने के ढंग से जान लूँगा
कि वह वही आदमी है

कुछ लोगों की आदतें उसकी पहचान
बन जाती हैं
जैसे मैं अभी राजेश जोशी के बारे में
बता रहा था, उनके भी सिगरेट पीने की
अदा निराली है

अलग-अलग लोग अलग-अलग ढँग से
सिगरेट पीते है
कुछ लोगों को फ़िल्टर वाली सिगरेट में
मज़ा नहीं आता है
वे बिना फ़िल्टर वाली सिगरेट को
तल्ख़ी से पीते है

धूम्रपान वाली चेतावनी का असर
सिगरेट पीने वाले लोगों पर नहीं पड़ता
वे चेतावनी को भी पी जाते हैं

किसी चीज़ की बिक्री अगर बढ़ानी है
तो उसे वर्जित करने के तरीके
बाज़ारवादी जानते हैं
वे ज़हरीली चीज़ों को अमृत बता कर
बेचते है

हम बेकार में सिगरेट के बारे में बात
कर रहे हैं
हमें तो उस आदमी के बारे में सोचना
चाहिए जो अभी-अभी ग़ायब हुआ है

अगर मुझे मालूम होता कि वह आदमी
ठीक हमारे सामने ग़ायब हो जाएगा
तो उसका नाम-पता ज़रूर पूछता
ताकि थाने में एफ़० आई० आर० दर्ज करने में
सहूलियत हो

लेकिन क्या थाने में प्राथमिकी दर्ज कराने से
वह आदमी मिल सकता है, इसका उत्तर
हम सभी जानते हैं

कुछ लोग पुलिस के फ़ाइलो में ग़ायब हो जाते है
लेकिन ताउम्र नहीं मिलते

पुलिस अधिकारी मुस्कराते हुए कहता है
ग़ायब होने वालों की तादाद बढ़ती जा
रही है
पुलिस में इतने लोग नहीं है कि उन्हें
खोजा जा सके

पुलिस के पास बलात्कार और चोरी के
इतने मामले हैं कि उनसे ही नहीं
फुरसत मिलती है
उसे देखनी पड़ती है विशिष्टजनों की सुरक्षा
सब कुछ पुलिस ही करे तो क्या जनता
कनकव्वे उड़ाएगी

बहुत लोगों के ग़ायब होने के पुख़्ता सबूत हैं
लेकिन वे नहीं मिल रहे हैं
मैं कई ग़ायब लोगों के बारे में जानता हूँ
वे वर्षों बाद नहीं मिले

ग़ायब होने वालों के बारे में बड़ी मासूमियत
के साथ कहा जाता है कि वे कहीं चले गए हैं
लेकिन अगर वे चले गए होते तो लौटते
ज़रूर

चले जाने और ग़ायब होने के बीच
कहीं गोलमाल और रहस्य दिखाई देता है

परिवार के लोग कुछ दिनों के लिए परेशान
रहते हैं फिर आदत पड़ जाती है

राजनेता ख़ुश हो जाता है कि वे लोग ही
ग़ायब हो रहे हैं जिन्होंने उन्हें मतदान
नहीं दिया था
क्या लोग योजनाबद्ध तरीके से ग़ायब
किए जा रहे हैं
या कोई गिरोह सक्रिय है जिसे सत्ता का
संरक्षण मिला हुआ है ?

मतदाता-सूची से लोगों का ग़ायब होना
आम बात है
मतदाता-सूची में वे लोग ही बचे हुए हैं
जिनका मतदान में इस्तेमाल किया जा सकता है

लेकिन हमें उस आदमी की चिन्ता है
जो घोसियारी बाज़ार से ग़ायब हो
गया था

वह बाज़ार को बहुत ध्यान से देख रहा था
जैसे अपने घोंसले के लिए कोई जगह
खोज रहा हो
वह चिड़िया नहीं आदमी था, शायद वह
यहाँ बसना चाहता हो
विडम्बना देखिए, वह बसने के पहले ही
उजड़ गया

मेरे बचपन का दोस्त रामहरख बता रहा था
कि वह परेशान दिख रहा था
वह आसपास के इलाके से आया था
क्योंकि उसकी भाषा में स्थानीय शब्द
और बिम्ब थे

यहाँ यह सोचा जा सकता है कि क्यों
अच्छे आदमी ग़ायब हो जाते हैं
बुरे लोग बहुत दिनों तक ग़ायब नहीं होते
इसके लिए हमें उनकी मृत्यु का इन्तज़ार
करना पड़ता है
मृत्योपरान्त वे दु:स्वप्न की तरह हमारा
पीछा करते हैं

मैंने सोचा मुझे थाने जाना चाहिए
यह जानते हुए, वहाँ जाने से कुछ नहीं होगा
उल्टे हमारा मज़ाक उड़ाया जाएगा
वे अभद्रता के साथ मुझे पाग़ल कह
सकते हैं

बहरहाल मैं थाने पर पहुँचा
थानेदार अपने दोनों पाँव मेज़ पर रखकर
बदतमीजी से सिगरेट पी रहा था
जिन्हें बीड़ी पीने की तमीज़ न हो उसे
मुफ़्त में सिगरेट पीने को मिल जाए तो
ऐसा ही होता है

पुलिस को बहुत सी चीज़ें मुफ़्त में
मिलती हैं
उसकी अक़्ल के बारे में क्या टिप्पणी
की जाए कि कहाँ मिलती है
यह हम सब जानते हैं

वे भाषा को अश्लीलता की हद तक
भदेस बना देते हैं
वे बुरी ग़ालियों के आविष्कारक हैं
नैतिकता को रखैल बना कर रखते हैं

मैंने थानेदार से उस ग़ायब होने वाले
आदमी के बारे में बताया तो वह
भड़क गया अशिष्टता के साथ बोला
कहीं तुम्हारा पेंच तो नहीं ढीला है
जाओ अपने दिमाग़ का इलाज कराओ
यह खड़क सिंह का इलाका है, यहाँ
परिन्दा भी ग़ायब नहीं हो सकता है
जो ग़ायब करेगा उसके माँ की...।

मैं देखने में पढ़ा-लिखा और सभ्य
आदमी दिखता हूँ, लेकिन थानेदार ने
मेरे साथ जो व्यवहार किया उसे देखकर
मैं स्तब्ध हो गया
लेकिन उस आदमी के लिये यह जोख़िम
उठाना ही था

अब बताइए मैं कहाँ जाऊँ
मैं कवि राजेश जोशी से पूछता हूँ कि
ग़ायब होने वालों के बारे में कविताएँ
लिखना आसान है लेकिन उन्हें खोजना
कठिन है
कवि शब्द खोज सकता है, ग़ायब होने
वाले आदमी को खोजना पुलिस का
काम है

मैं राजेश जोशी से यह बात इसलिए
कह रहा हूँ क्योंकि वे वाकये के समय
हमारे साथ थे और उस आदमी के बगल में
सिगरेट पी रहे थे
सिगरेट तो मैं भी पी रहा था लेकिन
उनकी ज़िम्मेदारी बड़ी है, वे हमसे बड़े
कवि हैं

समाजशास्त्री बताते है, ग़ायब होने वालों
के पीछे बाज़ार की भूमिका है
यह बात थोड़ी सही लग सकती है
क्योंकि हमारे क़स्बे में अभी बन रहा है
बाज़ार

मैंने देखा है खेती के लिए ग़ायब हो
रही है ज़मीन
इमारते और दुकानें बन रही है
ज़मीन को निगल रही हैं, सड़कें
बैंक बन रहे हैं, खुल रहे है पेट्रोल-पम्प

सड़क के किनारे जो ज़मीन अनाज
उगलती थी, उसे नाजायज कामों के लिए
अधिकृत कर लिया गया है

यहाँ दफ़्तर बनेगे, शराबख़ानो की नींव पड़ेगी
लोग अपने बच्चों की फ़ीस के पैसे की
शराब ख़रीदकर पीएँगे
अपने घर को भूख के अन्धेरे में
ढकेल देंगे

सरकार चाहती है लोग नशे में रहें
उनके सोचने का समय शराब के प्याले में
डूब जाए
इसलिए जहाँ स्कूल खुलने चाहिए वहाँ
शराबख़ानो का शिलान्यास हो रहा है

सेतु बाबा कहते थे जैसे सड़क आएगी
गाँव के गाँव तहस-नहस हो जाएँगे
बिना सड़क के हाथी-घोड़े आते हैं
सड़क बन जाएगी तो मोटर-गाड़ी आएगी
उसमें से ख़तरनाक लोग उतरेंगे
और हमें खड़े-खड़े बाज़ार में बेच देंगे

शहर का आदमी बड़ा शैतान होता है
वह हवा में आदमी को ग़ायब
कर देता है
वह आधुनिक समय का लकड़सुँघवा है
यह बात तब हमें बुरी लगती थी लेकिन अब
लगता है वे सच कह रहे थे
सरकार कई मुँह से झूठ बोलती है
एक मुँह ज़रा चुप रहता है
जब बहुत संकट आता है तब खुलता है
सरकार के पास विदूषको की एक फौज है
जो मँहगाई और भ्रष्टाचार के बीच
जनता का मनोरंजन करती रहती है

विपक्ष को सोने की कुर्सी दिखाई
पड़ती है, उसका स्वप्न देखते-देखते वे
स्त्रैण होते रहते हैं

दुखद समाचार यह है कि ज़्यादातर
बच्चे ग़ायब हो रहे हैं
जिस समाज से बच्चे ग़ायब हो रहे हों
वह कितना असुरक्षित समय है

किसका दरवाज़ा खटखटाया जाए
सरकारें तो बहरी हो चुकी हैं
थाने में प्राथमिकी दर्ज कराने जाइए
तो गिरफ़्तार होने का डर है

उन औरतों के बारे में सोचिए जो
थाने पर अपना दुख प्रकट करने गई थीं
और उन्हें क्षत-विक्षत करके भेजा गया

प्रधानमन्त्रीरी भी अपना भेष बदलकर थाने में
जाएँ तो उन्हें पता चलेगा कि थानेदार
जवार में प्रधानमन्त्रीरी से बड़ा ओहदेदार है
इलाके में उसकी तूती बोलती है
उसके थाने में कोई भी हज़म हो
सकता है

इसके बावजूद इस सवाल को ऐसे नहीं
छोड़ा जा सकता
थोड़ा आप सोचिए, थोड़ा हम सोचें
ताकि ग़ायब होने वालों के बारे में
कोई हल निकल सके

आप यह भी सोचिए कि यदि आप
बचे हुए हैं तो इसका यह अर्थ नहीं कि
आप ग़ायब नहीं हो सकते


दरअसल यह कविता नहीं एक त्रासद स्वप्न-दृश्य है। दशहरे में मैं अपने गाँव गया हुआ था। गाँव सुदूर इलाके में है। गाँव के समीप एक बन रहा क़स्बा 'घोसियारी बाज़ार' है। ग़ायब होने वाले आदमी के बारे में यह स्वप्न मैंने दशहरे की रात में देखा, उठा तो पसीने से लथपथ था। सोचा इसे लिखूँगा नहीं तो मुक्त नहीं हो पाऊँगा। गाँव में बिजली के तार हैं लेकिन रोशनी कभी कभी आती है। सो यह कविता रात के तीन बजे टार्च की रोशनी में लिखी, उसके बाद सो नहीं पाया।