भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ग़ालिब /गुलज़ार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात को अक्सर होता है,परवाने आकर,
टेबल लैम्प के गिर्द इकट्ठे हो जाते हैं
सुनते हैं,सर धुनते हैं
सुन के सब अश'आर गज़ल के
जब भी मैं दीवान-ए-ग़ालिब
खोल के पढ़ने बैठता हूँ
सुबह फिर दीवान के रौशन सफ़हों से
परवानों की राख उठानी पड़ती है .