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ग़ुँचों के तबस्सुम पर हम ग़ौर नहीं करते / 'नसीम' शाहजहांपुरी
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ग़ुँचों के तबस्सुम पर हम ग़ौर नहीं करते
ख़ामोश तकल्लुम पर हम ग़ौर नहीं करते
डूबे के रहे कश्ती दरिया-ए-मोहब्बत में
तूफ़ान ओ तलातुम पर हम ग़ौर नहीं करते
कलियों के तबस्सुम की तक़लीद तो करते हैं
अंज़ाम-ए-तबस्सुम पर हम ग़ौर नहीं करते
उन के रूख़-ए-ताबाँ की देखी है झलक जब से
मेहर ओ मह ओ अंजुम पर हम ग़ौर नहीं करते
ग़म हो के ख़ुशी दोनों यक-साँ हैं मोहब्बत में
कुछ अश्क ओ तबस्सुम पर हम ग़ौर नहीं करते
जब तक के मोहब्बत में दिल दिल से नहीं मिलता
नज़रों के तसादुम पर हम ग़ौर नहीं करते
अशआर-नवाज़ी ही शेवा है ‘नसीम’ अपना
शाएर के तरन्नुम पर हम ग़ौर नहीं करते