भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ग़ुज़रना है उन्हें तूफ़ान होकर / राजमूर्ति ‘सौरभ’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ग़ुज़रना है उन्हें तूफ़ान होकर,
तो हम भी हैं खड़े चट्टान होकर।

हमारी ज़ीस्त का मक़सद यही है,
जलेंगे आग में लोबान होकर।

कभी देखा है तुमने सच बताओ,
किसी के होठ की मुस्कान होकर।

सभी ,अपने नज़र आने लगेंगे,
कभी देखो तो हिन्दुस्तान होकर।

तेरी राहों में नाकामी खड़ी है,
कहीं भिक्षा कहीं अनुदान होकर।

उन्हीं से आजकल मिलना कठिन है
जो मिलते थे बहुत आसान होकर।

फ़िज़ाओं में बिखर जायेंगे 'सौरभ ',
हम अपने दौर की पहचान होकर।