भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ग़ुम हुआ आदमी / कुँअर रवीन्द्र
Kavita Kosh से
जब से हम सभ्य हुए
बस तब से ही
ढूँढ़ रहा हूँ
उस आदमी को
जो अपने बीच कही
किसी शहर किसी गाँव में
गुम हो गया है
बाज़ार में