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ग़ुलाम / सोमदत्त
Kavita Kosh से
कैंचियाँ जानी तो खुश हुआ
किस ख़ूबसूरती से कतरती हैं बढ़े बाल
किस बारीक़ी से बाहें, पाँयचे, गले
कितनी ख़ूबसूरती से चिड़ियाँ, फूल,
मगन था डूबा था लहालोट था
यकायक उनने कतरना शुरू कर दीं
हमारी बाँहें
हमारी ज़ुबानें
हमारे सिर
बहुत देर हो चुकी थी यह जानते-जानते
कि हम
उनके ज़रख़रीद ग़ुलाम हैं