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ग़ैबी दुनियाओं से तन्हा क्यूँ आता है / रियाज़ लतीफ़
Kavita Kosh से
ग़ैबी दुनियाओं से तन्हा क्यूँ आता है
दो होंटों के बीच ये दरिया क्यूँ आता है
जैसे मैं अपनी आँखों में डूबर रहा हूँ
ग़ैरों को अक्सर ये सपना क्यूँ आता है
मेरी रातों के सारे असरार समेटे
मुझ से पहले मेरा साया क्यूँ आता है
जहतों के बर्ज़ख़ में पाँव उलझ जाते हैं
रस्ते में साँसों का रास्ता क्यूँ आता है
सात फ़लक क्यूँ ढलते हैं आँसू में मेरे
पानी की तश्कील में सहरा क्यूँ आता है
मैं जब एक हयूला हूँ नफ़ी का तो फिर
हर चेहरे में मेरा चेहरा क्यूँ आता है