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ग़ैरतें ख़ाक में मिलाएं क्यूँ / अलका मिश्रा

ग़ैरतें ख़ाक में मिलाएं क्यूँ
सबकी चौखट पे सर झुकाएं क्यूँ

जिसका एहसास हो गया पत्थर
अपने दिल की उसे सुनाएँ क्यूँ

बुझ गया फिर दिया उम्मीदों का
पुर असर हो गईं हवाएं क्यूँ

तल्खियां घोल दें जो रिश्तों में
ऐसी बातें जुबां पे लाएं क्यूँ

ख़ुद के पीछे भला चलें कब तक
ख़ुद से आगे निकल न जाएं क्यूँ