गाँधी केरोॅ मूर्ति-अनावरण रोॅ छेलै माहौल
ऐलोॅ छेलै ढेर पार्टी रोॅ ढेर सिनी नेताओ
(जेकरोॅ खाली यही टा मकसद-खाओ और पकाओ)
नेता रोॅ एलचा-बेलचा, चम्मच सेँ भरलोॅ हौल
इक नेता रोॅ उठथैं ही चमकेॅ लागलै तिरशूल
दूसरा रोॅ उठथैं लहरैलेॅ माथोॅ ऊपर लाठी
(जानेॅ केकरोॅ किस्मत मेँ छै आय लिखलोॅ पँचकाठी)
गाँधी सोचै-आजादी की हमरोॅ छेलै भूल?
कोय बोलै छै गाँधी जी देशोॅ रोॅ दुश्मन छेलै
कोय बोलै कि गाँधी जी हमरोॅ पार्टी रोॅ नेता
जब तक गाँधी रहतै, बनलोॅ रहतै वही विजेता
कोय हरिजन-मसला पर गाँधी जी केॅ छूरा पेलै
तभिये एक नशेड़ी गाँधी जी सेँ लिपटी गेलै
संगमरमर रोॅ नाम पेॅ बनलोॅ गाँधी टूटी गेलै।