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गाँव का पंचून सोचे बात, श्रमदान मा देणहात / गढ़वाली
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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गाँव का पंचून सोचे बात, श्रमदान मा देणहात।
हात की साबली हात रैन, परवाणा देखी छक्का छुटी गैन।
पाड़ से जुइयां एक छंदा जवान, साबली चलौंदा जना काबुली खान
जनतान इनु करे यो सांसो, ये पाड़ तोड़ला हम जनु काँसो।
ये काम से न हम मुख मोड़ला, पड़ तैं हम हातून फोड़ला।
घणु की चोटुन पाड़ थर्राए, डाँडू वीठू मा सड़क आए।
शब्दार्थ
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