भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गाँव की बदल गई है भोर / अमित

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोयल की कूकों में शामिल है ट्रैक्टर का शोर
धान-रोपाई के गीतों की तान हुई कमजोर
गाँव की बदल गई है भोर।

कहाँ गये सावन के झूले औऽ कजरी के गीत
मन के भोले उल्लासों पर है टीवी की जीत
इतने चाँद उगे हर घर में चकरा गया चकोर

समाचार-पत्रों में देखा बीती नागपच‌इयाँ
गुड़िया ताल रंगीले-डण्डे कहाँ गईं खजुल‌इयाँ
दंगल गुप्प अखाड़े सूने बाग न कोई मोर

दरवाजे पर गाय न गोरू भले खड़ी हो कार
कीचड़-माटी कौन लपेटे जब चंगा व्यौपार
खेतों-खलिहानों में उगते मॉल और स्टोर