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गाँव के डगरिया में चढ़ती दुपहरिया में / खुशीलाल मंजर
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गाँव के डगरिया में चढ़ती दुपहरिया में
छनै छनै जलै हमरऽ गोड़
चलें बहिन खेतबा केॅ ओर
कोस भर लागै बहिन घरऽ सें बहियार में
मांटी काटै लेॅ जैबै नदिया किनार गे
हबा करे झिकाझोरी प्यास सें सुखलऽ ठोर
चलें बहिन खेतबा के ओर
सड़िया फटलऽ हमरऽ अंगिया बेकार गे
ऐतेॅ जैतेॅ कनखी मारै बेमनमां हजार गे
लोरबा चूवै छै बहिन अँचरा भींगे मोर
चलंे बहिन खेतबा के ओर
हाथऽ में लेल कलौआ, माँथे पे टोकरिया
झटकलऽ जाय छी बहिन करै लेॅ मजूरिया
दिन भर कमैलां बहिन पेटो नै भरलऽ मोर
चले बहिन खेतबा के ओर
बिदा होलै धरम करम मिटलै सद बिचार गे
खाली कुरसी तोड़ै ऑफिसर नेता करे किलोल गे
कहै ‘खुशी’ अब चूप नै रहबै बहुत सहिलियौ तोर
चलें बहिन खेतबा के ओर