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गाँव के पछिम एक पोखरी खुनाबल / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

लड़की खेलते-खेलते गाँव के बाहर गई। वहाँ दुलहा योगी के रूप में आया और उसने लड़की से उसका परिचय पूछा। परिचय के बाद वह उसे अपने साथ लेकर चल दिया। लड़की ने राहियों से अपने भाई और पिता के पास खबर भिजवाई। लड़की का भाई तलवार लेकर आया और वह योगी-रूपधारी दुलहे को मारने चला। बहन ने भाइ को मना किया और कहा- ‘अब इसी योगी से ही मेरा निर्वाह होगा। मेरे भाग्य में यही लिखा है, तुम योगी को न मारो।’

गाँव के पछिम एक पोखरी खुनाबल, अहे लागि गेलऽ हरिअर बाँस हे।
तहि तर अहिलन<ref>आये</ref> जोगिया तपसिया, बाघ छाल दिहलन बिछाय हे॥1॥
सुपती खेलैतेॅ गेली बेटी रुकमिनि बेटी, परि गेल जोगी मुख दीठ हे।
बाँहि धै जोगी जँघिया बैठाबल, पूछे लागल नैहर परिबार हे॥2॥
केकरि तों बेटी छिके केकरि तों पोती, कौने राजा के राजदुलारियो हे।
बाबाजी के पोती छिकौं बाबूजी के बेटी, कवन राजा राज दुलारियो हे॥3॥
हाली हाली<ref>जल्दी-जल्दी</ref> अरे जोगी बँसबा कटाबल, झट झट दिहले ओहारियो<ref>ओहार; परदा</ref> हे।
बाट रे बटोहिया कि तोहिं मोर भैया, हमरो समाद नेने<ref>लिये हुए</ref> जाव हे॥4॥
हमरो समदबा बटोहिया बाबा हजूर<ref>सन्मुख</ref> कहिहौन<ref>कहना</ref>, तोहरो पोती<ref>पौत्री</ref> जोगी साथ जाय हे।
हमरो समदबा बटोहिया भैया हजूर बोलिहौन, तोहरो बहिनी जोगी नेने जाय हे॥5॥
जुअबा खेलैते तोहें भैया से कवन भैया, देहो अम्माँ ढाल तरबारि हे।
मचिया बैठल तोहें अम्माँ से कनिया अम्माँ, देहो अम्मँ ढाल तरबारि हे॥6॥
जोगिया के काटब जोगिया के मारब, बहिनी के आनब छोड़ाय हे।
जनु जोगी काटू भैया जनु जोगी मारू, जिनि जोगी दुखरी नेराव<ref>दुःख का निवारण</ref> होइ हे॥7॥
तोहरो लिखल भैया बाबा चौखंडिया<ref>चार खंड का; चौपार मकान</ref>, हमरो लिखल जोगी साथ हे।
जहि दिन अहो भैया तोहरो जनम भेल, जेठ रे बैसाख केरा दिन हे।
हँसुआ हेरैतेॅ<ref>खोजते हुए; देखते हुए</ref> हो भैया खुरपी नहिं भेंटल, सोने मूठी छिलल लारि<ref>नाल</ref> हे॥8॥
जहि दिन अहो भैया हमरो जनम भेल, सावन भादब केरा राति हे।
हँसुआ हेरैते हो भैया खुरपी नहिं भेंटल, सितुए<ref>सितुहा</ref> दोखरल<ref>धोया गया; काटा गया</ref> मेरो लारि हे॥9॥
चन्नन छेबि<ref>छीलकर; काटकर</ref> हे भैया पड़े डँर सेदिया<ref>कमर की सेॅक</ref>, बड़े सुख काटल अम्माँ राति हे।
जो आक धतूर पड़े न पँचसेदिया<ref>पाँच अंगों को सेॅक</ref> बड़े दुख काटल अम्माँ राति हे॥10॥

शब्दार्थ
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